بزن آن پرده دوشین که من امروز خموشم | ز تف آتش عشقت من دلسوز خموشم | |
منم آن باز که مستم ز کله بسته شدستم | ز کله چشم فرازم ز کله دوز خموشم | |
ز نگار خوش پنهان ز یکی آتش پنهان | چو دل افروخته گشتم ز دلفروز خموشم | |
چو بدیدم که دهانم شد غماز نهانم | سخن فاش چه گویم که ز مرموز خموشم | |
به ره عشق خیالش چو قلاووز من آمد | ز رهش گویم لیکن ز قلاووز خموشم | |
ز غم افروخته گشتم به غم آموخته گشتم | ز غم ار ناله برآرم ز غم آموز خموشم |